( तर्ज - पिया मिलनके काज आज ० )
तू है बड़ा कठिन जमघाट ,
मिलेना बाट चढनको तेरी || टेक ||
चंचल मनकी दौड बुरी है ,
फिरे विषयको घेरी ।
जरा न ठहरे सत् - संगतमें ,
खींचे कुमति हमारी ॥१ ॥
साथि - संगाती मित्र - दोस्त सब , बहलावे दिस चारी ।
सत् - मारगपर कोउ न खींचे ,
देत विषयकी तारी ॥२ ॥
कहाँ जाऊँ , करुँ कैसे अब मैं ,
तुम्हरे रुपको छोरी ? ।
तुकड्यादास कहे , मुझ दीनको ,
लो चरणन गिरिधारी ! ॥३ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा